आवृतबीजी पादपों में जनन (Reproduction in Angiospermic Plants)

आवृतबीजी पादपों में जनन (Reproduction in Angiospermic Plants)


आवृतबीजी पादपों के जीवन चक्र में पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of generation) पाया जाता है। इनमें प्रथम पीढ़ी मुख्य पादप शरीर द्विगुणित (2n) बीजाणुद्भिद (Diploid sporophyte) होता है, जो दीर्घजीवी, स्वपोषी, मूल, स्तम्भ व पर्ण में विभेदित होता है। इस अवस्था में पुष्प का निर्माण होता है, जिस पर पुमंग व जायांग विकसित होते हैं। दूसरी पीढ़ी अगुणित (n) युग्मकोद्भिद् (Haploid gametophyte) द्वारा निरूपित होती है, जो बीजाणुपीढ़ी पर आश्रित, अल्पजीवी व अत्यन्त हासित होती है।

आवृतबीजियों (Angiosperms) में जनन मुख्यतः दो प्रकार से होता है-
I. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)

II लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)


अलैंगिक जनन (Asexual reproduction)

इस प्रकार के जनन में अर्धसूत्री विभाजन तथा युग्मक संलयन (meiosis and syngamy) के बिना ही नई संतति बनती है। इस प्रकार के पौधों का विकास, कोशिकाओं के समसूत्री विभाजन के द्वारा होता है। इसी कारण इस प्रकार के जनन को अलैंगिक जनन या असंगजनन(Apomixis) के नाम से जाना जाता है। इस विधि द्वारा उत्पन्न पौधे आनुवंशिक रूप से जनक पौधों (mother plants) जैसे ही होते हैं। इसलिए ऐसी संतति को 'क्लोन' (Clone) भी कहते हैं। आवृतबीजी पौधों में अलैंगिक जनन दो प्रकार से होता है



(i) अनिषेकबीजता (Agamospermy; A =3D बिना; gamous निषेचन; sperma = बीज)-

इसमें प्रवर्धन तो बीज (भ्रूण) के द्वारा ही होता है परन्तु इन बीजों (भ्रूणों) के विकास में अर्धसूत्रण व युग्मक संलयन नहीं होते हैं अर्थात् विना अर्धसूत्रण एवं युग्मक संलयन के बीज निर्माण की घटना अनिषेकबीजता (Agamospermy) कहलाती है। इस प्रकार बने बीज जननक्षम (Fertile) होते हैं।

(ii) कायिक जनन अथवा कायिक प्रवर्धन (Vegetative reproduction or vegetative propagation)- 

इस प्रकार के जनन में पौधे का पुनरुद्भवन (regeneration) बीज के अतिरिक्त पौधे के अन्य किसी कायिक भाग (vegetative part) से होता है कायिक जनन के लिए काम में आने वाले अंग को प्रवर्ध (propagule) कहते हैं। विभिन्न पौधों की जड़ें, तने एवं पत्तियाँ परिवर्तित होकर कायिक प्रवर्धन में भाग लेते हैं।

कायिक प्रवर्धन प्राकृतिक रूप से पौधों में पाया जाता अतिरिक्त कायिक प्रवर्धन की कृत्रिम विधियाँ भी प्राचीन काल से प्रचलित । इसके हैं। अत: कायिक प्रवर्धन की विधियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(1) प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन 
(2) कृत्रिम कायिक प्रवर्धन ।


 प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (Natural vegetative propagation)



पौधों में प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन निम्न कायिक अंगों द्वारा होता है 

तनों द्वारा कायिक प्रवर्धन (Vegetative propagation by stems)-


विभिन्न प्रकार के पौधों में तने रूपान्तरित होकर विशिष्ट संरचनाएँ बनाते हैं, जो कायिक प्रवर्धन में भाग लेती हैं ऐसी विशिष्ट संरचनाओं के निम्न प्रमुख प्रकार हैं-प्रकन्द (rhizome) ठदा. अदरक, कन्द (tuber) उदा. आलू, शल्क कन्द (bulb) उदा. लहसुन, घनकंद (corm) उदा. अरबी, क्रॉकस (केसर), उपरिभूस्तारी (runners) उदा. दूब, घास, अन्तःभूस्तारी (sucker) उदा. पोदीना, भूस्तारी (stolon) उदा. स्ट्राबैरी, भूस्तारिका (offset) उदा. जलकुम्भी इत्यादि में अनुकूल परिस्थितियों में कायिक प्रवर्धन होता है।

जड़ों द्वारा कायिक प्रवर्धन (Vegetative propagation by roots)-

बहुत से काष्ठीय पादपों (woodyplants) की जड़ों से प्ररोह का प्रादुर्भाव होता है; जिससे कि. नया पादप बनता है। उदा. नीम, चमेली, शीशम (Dalbergia sissoo), सिरिस (Albizia lebbeck) इत्यादि। कुछ पौधों में कंदीय मूल (tuberous roots) होती हैं जो कि अपस्थानिक कलिकायें (adventitious buds) उत्पन्न करती हैं। ये कलिकाएँ मातृ पादप के समान पौधे उत्पन्न करती हैं। उदा. शकरकन्द (Ipomoea batatas), ऐस्पेरेगस (Asparagus), डहेलिया (Dahlia) इत्यादि।

पत्तियों द्वारा कायिक प्रवर्धन (Vegetative propagation by leaves)- 

कुछ पौधों की पत्तियों पर अपस्थानिक कलिकाएँ विकसित होती हैं, जो पृथक् होकर नया पौधा बनाती हैं जैसे-पत्थरचट्टा (Bpoplyllum) में पत्तियों के किनारों से तथा बिगोनिया (Begonia) में पर्णवृन्त (petiole) तथा पर्ण शिराओं (veins) की सतह से कलिकाएँ निकलती हैं जो नव पादप बनाती हैं। ये नव पादप मातृ पादप से अलग होने के बाद पूर्ण विकसित पादपों का निर्माण करते हैं ।


 जननांगों द्वारा कायिक प्रवर्धन (Vegetative propagation by reproductive organs)-


कुछ पादपों में पुष्प कलिकाओं (flower buds) के स्थान पर बहुकोशिकीय पत्रकार या पत्र प्रकलिका (bulbils) बन जाते हैं । ये पत्रकंद भूमि पर गिरने के बाद विकसित होकर नए पादप बनाते हैं। उदा.एगेव (Agave), ग्लोबा (Globba), डायोस्कोरिया (Discorea bulbifera), लिलियम (Lilium bulbiferum) इत्यादि ।

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धन्यवाद



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