कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial vegetative propagation)

कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial vegetative propagation)



मानव द्वारा विकसित कायिक प्रवर्धन की विधियों को कृत्रिम कायिक प्रवर्धन कहते हैं। इन विधियों का उपयोग किसानों (Farmers ) तथा कृषि वैज्ञानिकों (Horticulturists) द्वारा व्यापक रूप से किया जाता है। इन विधियों के द्वारा आर्थिक महत्त्व के अनेक पौधों की श्रेष्ठ एवं उन्नत किस्में उत्पन्न की गई हैं कृत्रिम कायिक प्रवर्धन के लिए सामान्यतः निम्न विधियाँ काम में ली जाती हैं

कर्तन (Cuttings)

 (i) स्तम्भ कर्तन (Stem cuttings) तथा
 (ii) मूल कर्तन (Root cuttings)

दाब लगाना (Layering)-

 (i) टीला दाब
 (ii) वायुदाब या गुट्टी
 . रोपण (Grafting)–
(i) जिह्वारोपण (Tongue grafting)
(ii) फच्चर रोपण (Wedge grafting) 
(iii) किरीट रोपण (Crown grafting)
 (iv) कलिका रोपण (Bud grafting)।

कर्तन अथवा कटिंग (Cutting)


इस प्रक्रिया में पौधे के किसी कायिक भाग के टुकड़े (cuttings) काट कर उन्हें जमीन में रोप दिया जाता है। इन टुकड़ों से नए पौधे विकसित हो जाते हैं। कायिक प्रवर्धन की इस प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार पौधे के किसी भाग जैसे स्तम्भ, मूल, पर्ण इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है। कर्तन द्वारा कायिक प्रवर्धन को अनेक कारक (factors ) प्रभावित करते हैं, जैसे प्रवर्ध की उपयुक्त लम्बाई (optimal length), प्रवर्ध का व्यास (diameter), मातृ पादप की आयु (age), रोपाई के लिए उपयुक्त मौसम इत्यादि । इन सभी कारकों का ध्यान रखते हुए कर्तन द्वारा कम समय में अधिक पौधे प्राप्त कर सकते हैं। कर्तन (Cutting) मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है

(i) स्तम्भ कर्तन (Stem cutting)


(ii) मूल कर्तन (Root cutting)


गन्ना (sugarcane), अंगूर (grapes), गुलाब (rose) एवं बोगेनविलिया (Bougainvillea) इत्यादि में स्तम्भ कर्तन (Stem cutting) द्वारा कायिक प्रवर्धन करवाया जाता है। इन पौधों में 3-4 पर्वसंधि युक्त तनों के टुकड़ों को काटकर उगा दिया जाता है। अनुकूल वातावरण में इनसे अपस्थानिक जड़ें एवं नवप्ररोह निकल आते हैं। कुछ पौधों में स्तम्भ कर्तन को रोपण से पूर्व हॉर्मोन विलयन (hormone solution) में डुबोया जाता है जिससे इनमें जड़ों का विकास सफलतापूर्वक हो जाता है, उदा. कोलियस (Coleus), बिगोनिया (Begonia) इत्यादि।

मूल कर्तन (Root cutting) द्वारा जिन पौधों में कायिक प्रवर्धन करवाया जाता है उनके उदाहरण हैं-नींबू (lemon), अमरूद (guava),सेब (apple), चैरी (cherry), प्लम (plum) इत्यादि मूल कर्तन विधि के अन्तर्गत मूल के टुकड़ों या मूल कटिंग को सामान्यत: ऊर्ध्व स्थिति में लगाया जाता है, जिससे इनके शीर्ष पर उपस्थित अपस्थानिक कलिकाओं से नव प्ररोह निकल सके।

दाब लगाना या स्तरण (Layering)-


इस विधि में स्तम्भ अथवा शाखा को मुख्य पादप से अलग करने से पहले उसमें अपस्थानिक जड़ों (adventitious roots) की उत्पत्ति को प्रेरित किया जाता है। स्तरण की मुख्य विधियाँ निम्न हैं

(i) टीला दाब या दाब लगाना (Mound layering)-


इस विधि में पौधे के तने की किसी निचली शाखा को झुका कर जमीन में दबा देते हैं। इसे इस प्रकार दबाते हैं कि एक या अधिक पर्वसन्धि (node) जमीन में दब जाएँ तथा शाखा का शीर्ष भाग जिसमें पत्तियाँ लगी हों जमीन से बाहर निकला रहे। दबे हुए हिस्से को 5-8 सेमी. मोटी गीली मिट्टी की परत से अच्छी प्रकार ढक दिया जाता है। कुछ समय पश्चात् इस दबे हुए हिस्से से अपस्थानिक जड़ें फूटने लगती हैं। इसके पश्चात् शाखा को मिट्टी के पिण्ड सहित मातृपादप से काट कर अलग कर दिया जाता है। यह अब एक स्वतंत्र पादप का निर्माण कर लेता है। चमेली (Jasmine), मोगरा (Mogra), स्ट्राबैरी (Strawberry) इत्यादि पौधों में कायिक प्रवर्धन के लिए यह विधि काम में ली जाती है।

कई बार अपस्थानिक जड़ों के निर्माण की गति को बढ़ाने के लिए छाल को हटाकर 2-3 सेमी. चौड़ी V आकार की खाँच (notch) बना दी जाती है तथा इस हिस्से को गीली मिट्टी से ढक दिया जाता है। खाँच वाले हिस्से में जड़ें जल्दी निकलती हैं।

(ii) वायु स्तरीय दाब या गुट्टी लगाना (Air layering orGootee)


 अनार (Pomegranate), नारंगी (Orange), अमरूद (Guava), लीची (Litchi) इत्यादि पौधों में जिनमें शाखाएँ जमीन से बहुत ऊपर तथा मोटी होती हैं, की शाखा या तने की छाल की बाहरी परत या वलय (ring) को हटा देते हैं अथवा ऊपरी किनारे की तरफ एक तिरछा चीरा (slit) लगा देते हैं। इस कटे हुए हिस्से के चारों तरफ गीली मिट्टी, गीली रूई या मॉस पादप को लपेट देते हैं तथा इसके चारों तरफ गीला कपडा अथवा पॉलीथिन लपेट कर दोनों किनारों से बाँध देते हैं। इससे भीतरी भाग नम बना रहता है। इस ढके हुए भाग को गुट्टी (Gootee) कहते हैं। इस हिस्से के गीलेपन को बराबर बनाए रखा जाता है। इसके लिए एक पात्र द्वारा बूद -बूंद पानी दिया जाता है। 4-8 सप्ताह के अन्दर इस कटे हुए भाग से अपस्थानिक जड़ें निकल आती हैं। इस जड़युक्त भाग को मुख्य पौधे से अलग करके मिट्टी में रोप दिया जाता है।

रोपण अथवा ग्राफ्टिंग (Grafting)-


कायिक प्रवर्धन की इस विधि में दो अलग-अलग पौधों के हिस्सों को इस प्रकार से जोड़ा जाता है कि वे संयुक्त होकर एक ही पौधे के रूप में वृद्धि कर सकें। एक अच्छी किस्म के पादप के उस हिस्से को जिसका रोपण (grafting) किया जाता है कलम (scion) कहते हैं तथा दूसरा निम्न गुणों वाला स्थानीय पादप जिस पर कलम लगाई जाती है तथा जो नए पौधे का आधार भाग बनाता है स्कन्ध (stock) कहते हैं। स्कन्ध का मजबूत होना आवश्यक होता है। कलम तथा स्कन्ध को जोड़कर इस प्रकार बाँधा जाता है कि इन दोनों की एधा (cambium) सम्पर्क में रहे। कुछ समय पश्चात् दोनों एधाएँ जुड़ जाती हैं तथा इनकी कोशिकाएं विभाजित होना प्रारम्भ कर देती हैं। इस प्रकार स्कन्ध एवं कलम के संवहन ऊतकों (vascular tissues) में सम्पर्क स्थापित हो जाता है। ग्राफ्टिंग विधि में प्रौढ़ स्कन्ध पर तरुण कलम को रोप कर उसे पुष्पन के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसी प्रकार एक ही स्कन्ध पर विभिन्न जातियों (species) के कलम रोपित किए जा सकते हैं। उदाहरणार्थ नींबू के स्कन्ध पर संतरा (orange), अंगूर (grapes) इत्यादि के कलम लगा सकते हैं। इस विधि द्वारा दो पौधों के उत्तम लक्षणों को एक ही पौधे में प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण पौधों, जैसे-गुलाब, आम, अमरूद, नींबू, सेब आदि में किया जा सकता है। ग्राफ्टिंग निम्न प्रकार से हो सकती है


(i) ह्वीप या जीभी या जिह्वारोपण (Whip or tongue grafting)-


इस प्रकार की ग्राफ्टिंग में स्कन्भ एवं कलम समान व्यास वाले होते हैं। दोनों में 5-8 सेमी. लम्बा व तिरछा चीरा लगाया जाता है। अब दोनों में V' आकार का चीरा इस प्रकार लगाया जाता है कि स्कन्ध व कलम एक-दूसरे में दृढ़ता से फिट हो सकें। इन्हें कसकर बाँध दिया जाता है।

(ii) फच्चर या वेज रोपण (Wedge grafting)-


इसमें भी स्कन्ध एवं कलम समान व्यास वाले होते हैं। स्कन्ध में V आकार का चीरा लगाया जाता है जबकि कलम में वेज के आकार का चीरा लगाते है। तब इन दोनों को जोड़कर धागे से बाँध दिया जाता है।


(iii) किरीट या मुकुट रोपण (Crown grafting)-


इसमें स्कन्ध का व्यास कलम से कई गुना अधिक होता है। स्कन्ध के किनारों पर कई दरारें बनाकर, कलमों के आधारों को इनमें फंसा दिया जाता है। इसके पश्चात् इन्हें कसकर बाँध दिया जाता है। इस प्रकार अनेक कलम एक स्कन्ध पर रोपित किए जाते हैं।

(iv) कलिका रोपण (Bud grafting)-


इस विधि में एक कलिका का प्रत्यारोपण किया जाता है। स्कन्ध की छाल में T आकार का चीरा लगाया जाता है। छाल को सावधानीपूर्वक उठाकर उसमें कलिका कोप्रवेश कराया जाता है। इसके पश्चात् इन्हें बांध दिया जाता है, उदा, गुलाब इत्यादि।

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